Saturday, January 30, 2010

जैव तकनीक से जुड़े हैं कई खतरे

इन दिनों बी.टी. बैंगन का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। जन सुनवाईयां आयोजित की जा रही हैं। विरोध हो रहा है। अब इस विषय पर विचार करना जरूरी हो गया है कि मानव स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर मसले पर विशेषज्ञ समितियां क्यों मंजूरी दे रही हैं। हालांकि अभी सरकार ने इसे पूरी तरह झंडी नहीं दी है।

बी.टी. बैगन पर चर्चा करने से पहले यह जानना उचित होगा कि आखिर जैव तकनीक है क्या? जेनेटिक इंजीनियरिंग या जैव तकनीक एक नई तकनीक है जिसके द्वारा एक प्रजाति के जीन को दूसरी प्रजाति मं प्रवेश कराना संभव होता हे। इससे एक प्रजाति के गुण दूसरी प्रजाति में आ जाते हैं। इसमें बेसिलस थुरूंजेनेसिस नामक बैक्टीरिया के क्राई 1 एसी (Cry1Ac) एक जीन को बैगन की कोशिका में प्रवेश कराया जाता है। यह जीन पौधे में, उसकी कोशिका में एक विशेष प्रकार का जहर पैदा करता है। इस जीन में कीट मारने की क्षमता होती है।

मानव स्वास्थ्य से जुड़े इस मुद्दे पर जल्दबाजी में निर्णय लेना उचित नहीं है। कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने वैज्ञानिक डा. पुष्प भार्गव को जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल समिति (जीईएसी) के कार्य पर निगरानी रखने के लिए नियुक्त किया। डा. भार्गव ने इसे अनैतिक व गंभीर गलती बताया है। डा. भार्गव ने कहा है कि अब तक बीटी बैंगन के लिए जरूरी परीक्षण पूरे नहीं किए गए हैं। फिर इसे तत्काल मंजूरी देने का क्या औचित्य है?

यहां बीटी कपास का उदाहरण देना उचित होगा। इसी तकनीक से तैयार बीटी कपास के चरने से पूर्व में आंध्रप्रदेश में भेड़, बकरी मरने की खबरें आई थीं। मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में बीटी कपास चुनने वाले और जिनिंग मिलों में काम करने वाले मजदूरों को एलर्जी की शिकायत हुई है। कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ में बीटी राइस के साथ बीटी बैंगन का मुद्दा का भी सामने आया था जिसका काफी विरोध हुआ था।

अमरीका में बेयर नाम की कंपनी ने जीन परिवर्तित लिबर्टी लिंक राइस का परीक्षण किया। कुछ समय तक इसकी जानकारी दबी-छुपी रही। लेकिन जब उजागर हुई तो अमरीका के चावल निर्यात पर इसका असर पड़ा। यूरोपीय संघ ने अमरीकी चावल को आयात करने से इंकार कर दिया। अमरीका की धान की खेती जैव प्रदूषित हो गई। इसके चलते अमरीका को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। इसी प्रकार दुनिया के कई देशों ने अपने यहां जी एम फसलों पर रोक लगाई है।

एक और उदाहरण लें तो लातिनी अमरीका के चार-पांच देशों ने आलू फसल की विविधता उत्पत्ति केन्द्र को जैव प्रदूषण से बचाने के लिए अपने यहां रोक लगाई। यहां आलू की कई किस्में हैं। ऐसे सुरक्षा उपाय इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे खाद्य सुरक्षा व खेती की अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ सकती है। मक्का के उत्पत्ति केन्द्र मेक्सिको के आदिवासी क्षेत्रों के जी. एम. मक्का से जैव प्रदूषण का मामला कई वर्षों से अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है। यह प्रदूषण अमरीकी कंपनियों द्वारा प्रचारित किए गए जी.एम. (जेनिटीकली मोडीफाइड) मक्का से ही हुआ है।

जैव तकनीक आज देष और दुनिया में फ़लता-फ़ूलता व्यापार है। जैव तकनीक का आधार मुख्य रूप से जैव विविधता है। अगर जलवायु की दृष्टि से देखें तो यह विविधता गर्म जलवायु वाले देशों में पाई जाती है। और आर्थिक दृष्टि से देखें तो गरीब देषों में जैव विविधता का भंडार है। एक अनुमान के अनुसार हमारे यहां बैंगन की सैकड़ों किस्में हैं फिर यह नई किस्म क्यों? अगर हमारी जैव विविधता प्रदूषित हो गई तो इन्हीं कंपनियों का बीजों के व्यवसाय पर एकाधिकार हो जाएगा।

कुछ वर्षों पहले टर्मिनेटर टेक्नोलाॅजी का अमरीका में पेटेंट हो चुका है जिसके जरिए ऐसे बीज तैयार किए जा सकते हैं जो अगले साल उग ही न सकें। यानी पौधा-बीज-पौधा का चक्र ही खत्म हो जाए। हर साल किसान बड़ी-बड़ी कंपनियों पर निर्भर हो जाए, ऐसी कोशिशे की जा रही हैं। ऐसी स्थिति में बहुराश्टीय कंपनियों का खाद्य उत्पादन व वितरण में एकतरफा नियंत्रण हो जाएगा और ये कंपनियां बीज व रसायन का मनमाना दाम वसूल सकेगी।

आजकल कई वैज्ञानिक जैव तकनीक के विभिन्न रूपों को तैयार करने में जुटे हैं। इसके माध्यम से विभिन्न जीवों में आनुवांशिक गुण या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने वाले गुण जीन के रूप में प्रकट होते हैं व जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए एक जीव के कुछ विशेष जीनों को दूसरे जीव में पहुंचाया जा सकता है। इस तरह जीवन का एक नया रूप ही तैयार किया जा सकता है। अब तो पशु के किसी जीन को पौधे में, मनुष्य के किसी जीन को पशु में प्रवे्श करवाने के प्रयास हो रहे हैं। इससे जैव तकनीक पर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

इसके अलावा, जैव तकनीक से कई और खतरे जुड़े हुए हैं। यदि नए जीवाणुओं को वातावरण में छोड़ने से पहले उनेक संभावित-दुष्परिणामों की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इससे विनाश भी हो सकता है। जैव तकनीक से प्राप्त खाद्य पदार्थों को उपलब्ध कराने से पहले यह देखा जा रहा है कि इनके खाने से लोगों के स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव तो नहीं पड़ेगा? विदेशों में जीएम खाद्य पदार्थो पर लेबल लगाने की मुहिम चलाई जा रही है जिससे पता चल सके कि यह जीएम खाद्य है या नहीं?

इसके अलावा, जैव तकनीक के तार उदारीकरण और भूमंडलीकरण से भी जुड़े हुए हैं। इसलिए यह मुद्दा और भी गंभीर है। विश्व व्यापार संगठन बनने से पहले भारत में बीज व्यवसाय में विदेशी कंपनियों को आने की इजाजत नहीं थी। बीजों के आदान-प्रदान किसानों के हाथ में था लेकिन अब स्थिति बदल गई।

बैंगन गरीबों की सब्जी है। आम तौर पर इसकी खेती गरीब ही करते हैं और खाते भी वे ही हैं। इसकी खेती बरसों से होती रही है। मध्यप्रदेश के कहार और बरौआ जाति के लोग इसकी खेती करते आ रहे हैं। वे नदियों के कछार व रेत में इसकी खेती करते हैं। लेकिन अगर बीटी बैंगन को हरी झंडी मिल गई तो उनकी थाली से बैंगन की सब्जी भी छिन जाएगी।

(लेखक विकासात्मक मुद्दो पर लिखते है)