Friday, October 9, 2009

उम्मीद की किरण दिखा रही हैं छत्तीसगढ़ की दो सरपंच

स्वास्थ्य के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ की दो महिला सरपंच के कामों की कीर्ति फैलती जा रही है। ये दोनों बिलासपुर जिले के कोटा विकासखंड से हैं। एक है करहीकछार की तिहारिन बाई और दूसरी हैं रतखंडी की पुष्पाराज। दोनों महिला सरपंच आदिवासी समुदाय से हैं तिहारिन बाई उरांव हैं और पुष्पाराज गोंड। दोनों सरपंच होने के साथ-साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी हैं और यहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत्त गनियारी स्थित गैर सरकारी संस्था जन स्वास्थ्य सहयोग से जुड़ी हुई हैं।

बिलासपुर से 20 किलोमीटर दूर कोटा विकासखंड का मुख्यालय है। इसी क्षेत्र में ये दोनों पंचायतें स्थित हैं। यह आदिवासी बहुल और जंगल वाला पिछड़ा हुआ क्षेत्र है। यहां एक छोटे से कस्बे गनियारी में गैर सरकारी जन स्वास्थ्य सहयोग केन्द्र है, जिसकी स्थापना 1999 में हुई थी। इसे मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं से चिंतित कुछ डाक्टरों ने शुरू किया जिसमें से कुछ डाक्टर आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (एम्स) नई दिल्ली से निकले थे। इसका उद्देशय है ग्रामीण समुदाय को और विशेषकर महिलाओं को सशकत कर बीमारियों की रोकथाम करना और इलाज करना। यह 15 बिस्तर का अस्पताल है, जहां 10 पूरावक्ती डाक्टर हैं। इस केन्द्र के ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम की दोनों कार्यकर्ता हिस्सा हैं।
ये दोनों महिला सरपंच अपने पंचायतों के दायित्व निर्वहन के साथ-साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ता का काम भी बखूबी कर रही हैं। उनके इस काम में ग्रामीणों का भी अच्छा सहयोग मिल रहा है। वे अपने गांव में मलेरिया की रोकथाम की मुहिम चलाती हैं, गर्भवती महिलाओं की जांच में मदद करती हैं। वे बच्चों के पोषण और परवरिश के लिए चलाए जा रहे फुलवारी केन्द्र की निगरानी करती हैं और छोटी-मोटी बीमारियों का अपने स्तर प्राथमिक उपचार करती हैं। कुल मिलाकर, वे ग्रामीणों और अस्पताल के बीच में पुल का काम कर रही हैं जिससे गांव में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हल करने में मदद मिल रही है।
इस इलाके में मलेरिया की रोकथाम एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के द्वारा कई स्तरों पर मुहिम चलाई जाती है। इसमें दो स्तरों पर काम किया जाता है। एक, मलेरिया के मरीज की पहचान कर उसका तुरंत इलाज करवाना और दूसरा, गांव में मलेरिया के मच्छरों को पनपने से रोकना। इस मुहिम में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
इस मुहिम में स्कूली बच्चों और किशोरी बालिकाओं का भी सहयोग लिया जाता है। मच्छरदानी के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है। इस काम में दोनों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का काम उल्लेखनीय है। जन स्वास्थ्य सहयोग के कार्यक्रम संयोजक प्रफुल्ल चंदेल कहते हैं इनसे हमें मलेरिया की रोकथाम करने में काफी मदद मिली है। इस इलाके में अब मलेरिया से होनेवाली मौतें आधी हो गई है।
इसी प्रकार ये दोनों कार्यकर्ता अपने गांव मे बच्चों के पोषण और परवरिश के लिए चलाए जा रहे फुलवारी केन्द्र में भी मदद करती हैं। वे उनका वजन लेती हैं अगर कम वजन होता है, यानी बच्चा कुपोषित होता है तो उसका वजन बढ़ाने के लिए प्रयास किया जाता है। करहीकछार पंचायत में 5 फुलवारी केन्द्र चल रहे है और रतखंडी में 3 केन्द्र चलाए जा रहे है।
जन स्वास्थ्य सहयोग, गनियारी के डा. अनुराग भार्गव का कहना है कि 6 माह से 3 साल तक के आयुवाले बच्चो को समुचित पोषण देने की जरूरत होती है। अगर बच्चा बचपन में कुपोषित रहा तो उसका असर रहता है। इसलिए उन्हें इस अवधि में स्वादिष्ट, गरम, पतले और मुलायम भोजन की जरूरत होती है, जो कि फुलवारी केन्द्रों में दिया जाता है। इसके लिए गांव से प्रतिदिन एक-एक मुट्ठी चावल एकत्र कर फुलवारी को दिया जाता है। ग्रामीणों का सहयोग ऐसे कामों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ही संभव होता है। दोनों पंचायतों में बाल पोषण का स्तर सुधारने में ये कार्यकर्ता जुटी हुई हैं। करहीकछार की सरपंच तिहारिन बाई का कहना है कि हमारे गांव में 20-22 प्रसव हुए। इसमें सभी बच्चे स्वस्थ थे।
चिकित्सकों का मानना है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बात सिद्ध हो गई है कि कुपोषित व्यक्ति जल्द बीमार होता है। इसलिए बच्चे और बड़े स्वस्थ रहें, यह जरूरी है। इसके लिए अपने आसपास उपलब्ध जंगल और खेत से मिलनेवाले पोषक आहारों को लेने की सलाह दी जाती है। जिसमें फल, फूल, पत्तिया, तिलहन, दाल और अनाज शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर अमौदि्रक चीजें होती हैं, जो सहज उपलब्ध होती है, इनकी जानकारी ग्रामीणों को दी जाती है।
हालांकि दोनों ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं तिहारिन बाई 5वीं तक और पुष्पाराज की शिक्षा 8 वीं तक हुई है। लेकिन गहरी लगन, सक्रयिता और ग्रामीणों के प्रति सेवा भावना से ये अच्छी स्वास्थ्य कार्यकर्ता साबित हो रही हैं। यहां स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के चयन का आधार स्कूली शिक्षा नहीं है, बल्कि ग्रामीणों के साथ व्यवहार में मिलनसार, गांव की सेवा और सहयोग की भावना को ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता बनने की योग्यता माना जाता है। और वे चिकित्सकों की सतत् देखरेख और प्रशिक्षण के चलते बखूबी यह काम कर रही हैं। उन्हें प्रशिक्षण सामग्री- पोस्टर, पर्चे, आदि के माध्यम से शिक्षण किया जाता है। इस क्षेत्र में करीब 80 महिला कार्यकर्ता सक्रयि हैं।
अब वे थर्मामीटर से बुखार नापने से लेकर मलेरिया की स्लाइड बनाना और ब्लड प्रेशर की जांच कर लेती हैं। वे बच्चों का वजन कर लेती हैं। स्थानीय खाद्य पदर्थों , विशेषकर पोषण प्रदान करनेवाले फल-फूलों से कुपोषण दूर करने की सलाह देती हैं।

वे ओ. आर. एस. का घोल बनाना सिखाती हैं। वे अपने गांव से गुजरने वाली मिनी बसों के जरिये ऐसी छोटी-मोटी जांच के लिए स्वास्थ्य केन्द्र नमूने भेजती हैं जिसकी जांच रिपोर्ट उसी दिन बस से स्वास्थ्य केन्द्र से उन्हें भेज दी जाती हैं। सड़कों के आवागमन का स्वास्थ्य सुविधाओं में सहायक होने का यह एक अच्छा उदाहरण है। एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छे परिवहन की जरूरत होती है।
ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम के प्रमुख डा. योगेश जैन का कहना है कि दोनों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का सरपंच होने का लाभ हमारे स्वास्थ्य कार्यक्रम में मिलता है। खासतौर से महिला स्वास्थ्य में तो इसका विशेष लाभ होता ही है। गर्भवती महिलाओं की जांच और अन्य बीमारियों की रोकथाम में उनकी वि्शेष भूमिका है। उनकी बात लोग सुनते हैं और मानते हैं। हमारे कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी सार्थक होती है। उनके पास पंचायत का कुछ अतिरिक्त फंड भी होता है जिसे वे ग्रामीणों के इलाज के लिए खर्च कर सकती हैं।

यानी कुल मिलाकर, इन दोनों महिला सरपंचों का काम कई मायनों में उपयोगी है। एक, आज जब दवाओं के दाम आसमान छू रहे हैं और स्वास्थ्य सेवाएं लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही है, तब गांव की ही महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता गांवों के स्वास्थ्य को बेहतर करने का करें तो यह उपयोगी और सार्थक काम है। दो, देश के अन्य भागों की तरह छत्तीसगढ़ में भी महिलाओं को समाज में कमतर दर्जा मिलता है। यहां एक अंधवि’वास टोनही प्रथा के रूप में प्रचलित है जिसमें किसी महिला को जादू-टोना का आरोप लगाकर उसे प्रताड़ित किया जाता है। हालांकि इसे कानून के द्वारा रोकने के लिए कोशिश की गई है लेकिन ऐसे में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता भी मददगार हो सकती है।

तीन, बदलाव की प्रक्रिया सदैव जमीनी स्तर से ही शुरु होती है, जिसकी शुरुआत पंचायतों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के साथ हो चुकी है। यह महिला सशक्तिकरण का भी एक अच्छा और सराहनीय प्रयास है। इस पूरे काम के बारे में करहीकछार की सरपंच तिहारिन बाई कहती है कि मैं लोगों के कुछ काम आ रही हूं, गांव के लिए कुछ कर रही हूं, यह सोचकर बहुत अच्छा लगता है। रतखंडी की सरपंच पुष्पा भी हमेशा ऐसा ही काम करना चाहती हैं। कुल मिलाकर, इन दोनों सरपंचों के काम हमें उम्मीद की किरण दिखा रही हैं, जो सराहनीय होने के साथ अनुकरणीय भी है।

4 comments:

  1. आपने जमीनी स्तर से इस ब्लॉग लेखन की प्रक्रिया शुरु की है ,तिहारिन बाई और पुष्पाराज के काम की तरह यह ब्लॉग भी बदलाव की प्रक्रिया का औजार बनेगा। ब्लॉग जगत की सेहत सँभालने में भी यह मील का पत्थर साबित हो । जिन्दाबाद !

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  2. ये महिलाएं ही देश में बदलाव की नींव बनेंगी।

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  3. जिसे पैर में बिवाई फटी हो वही कुछ मलहम का आविष्कार करेगा। अच्छा ब्लाग। बधाई हो।

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  4. great women of indian democracy

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