Saturday, March 20, 2010

क्या नर्मदा की निर्मल चादर मैली होगी?

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के सांईखेड़ा विकासखंड में एन.टी.पी.सी. के कोयला बिजलीघर लगने की खबर से गांववासी आंदोलित हैं। वे अपने घर-जमीन बचाने के लिए महात्मा गांधी की राह पर चलकर सत्याग्रह कर रहे हैं। धरना, प्रदर्शन और संकल्प का सिलसिला चल रहा है। वे प्रशासन के आला अफसरों से लेकर मुख्यमंत्री तक से मिल चुके हैं लेकिन अब तक उन्हें कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिला है।

इधर उन्होंने आंदोलन तेज करते हुए पिछले दिनों नर्मदा जल में खडे होकर संकल्प ले लिया है कि जान देंगे पर जमीन नहीं। गांववासियों की एकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पंचायत चुनाव का उन्होंने पूर्ण रूप से बहिष्कार किया और इन गांवों में एक भी वोट नहीं पडा।

नर्मदा और दूधी नदी के संगम पर बनने वाला यह सुपर कोयला बिजलीघर 2640 मेगावाट बिजली बनाएगा। इसमें 9 गांव की जमीन उपजाऊ जमीन ली जाने वाली है। तूमडा, महेशवर, संसारखेडा, मेहरागांव, झिकौली और निमावर ग्राम पंचायतों के 9 गांवों की जमीन जाएगी। इसके अलावा बरौआ, नोरिया, केंवट जैसे मछुआरा समुदाय के लोग भी प्रभावित होंगे। इन समुदायों का बरगी बांध बनने से पहले ही डंगरबाडी (तरबूज-खरबूज की खेती) का धंधा चौपट हो गया है। बरगी बांध से समय-असमय पानी छोडा जाता है, इस कारण तरबूज-खरबूज की खेती नहीं हो पा रही है।

तूमड़ा निवासी दयाद्गांकर खेमरिया कहते हैं कि यह सबसे उपजाऊ जमीन है। फसलों के रूप में सोना उगलती है। हम इसमें सभी फसलें लेते हैं। पहले यहां कपास और मूंगफली की खेती होती थी। वर्तमान में यहां की तुअर प्रसिद्ध है। यह नर्मदा कछार की जमीन है। सोयाबीन, गेहूं, गन्ना सब कुछ होता है। उन्होंने कहा कि हालांकि गांव नहीं हटाए जा रहे हैं लेकिन जब जमीन नहीं रहेगी, तो हम क्या करेंगे? यहां के पूर्व सरपंच छत्रपाल ने कहा कि हम किसी भी कीमत पर एन. टी. पी.सी. का संयंत्र नहीं लगने देंगे। इसका पूरी ताकत से विरोध किया जाएगा।

इस तरह नर्मदा पर करीब एक दर्जन बिजलीघर बनने वाले हैं। बडे-बडे बांध बनने के बाद नर्मदा पर यह दूसरा सबसे बडा संकट है। बरगी बांध, इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, महेश्वर और सरदार सरोवर जैसे बांध बनाए जा चुके हैं। इससे नर्मदा के किनारे बसे गांवों और मंदिरों के रूप में हमारी बरसों पुरानी सभ्यता व संस्कृति खत्म हो रही है। नर्मदा की परिक्रमा की परंपरा बहुत पुरानी है। नर्मदा किनारे कई परकम्मावासी मिल जाएंगे। यहां कई पुरातत्वीय महत्व के स्थल भी मिले हैं।

बिजलीघर के विरोध करने के लिए बनी किसान मजदूर संघर्ष समिति तूमडा ने नर्मदा मां से भी अपने ऊपर आए इस संकट में गुहार लगाई है। इसमें कहा गया है कि '' हे मां, तेरी असीम कृपा से इस इलाके में जो नेमत बरसती थी, उससे यहां के रहवासियों को वंचित किया जा रहा है। मां ! जिस जमीन को तू हर साल अपने आंचल में समेट कर नया उर्वर जीवन देती रही है, बिजलीघर लग जाने के बाद, तेरी यही नियामत राख के पहाडों से बांझ हो जाएगी।''

करीब 5 हजार आबादी वाले तूमड़ा गांव की दीवारों पर एन.टी.पी.सी. के विरोध में नारे लिखे गए हैं। चौराहे पर एकत्र होकर दिन भर बिजलीघर ही चर्चा के केन्द्र में है। लोग बेचैन और परेशान हैं। आंदोलन कर रहे हैं। अब तक कोई अनिद्गचय का वातावरण बना हुआ है। दयाशंकर खेमरिया कहते हैं ''हमें प्यास लगी है, पानी चाहिए, वे हमें संतरा की गोली देते हैं। स्पष्ट कुछ नहीं कहा जाता, संयंत्र यहीं लगेगा या और कहीं। ''

समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुनील ने कहा कि नर्मदा बरगी बांध बनने से नर्मदा में तरबूज-खरबूज की बाडियों का धंधा चौपट हो गया। अब बिजलीघरों की राखड और कारखानों के प्रदूषण से मछली खतम हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इनसे नदियां, जमीन, जंगल, जैव विविधता नहीं बचेगी। और नर्मदा जो बडे बांध बनने के कारण पहले से ही तालाब और नाला में बदल गई है, अब गटर में तब्दील हो जाएगी।

करीब 25 सालों से किसान-आदिवासियों के हक और इज्जत की लडाई लडने वाले श्री सुनील सवाल उठाते हैं कि क्या नर्मदा की स्थिति यमुना और गंगा जैसी नहीं होगी ? क्या नर्मदा का पानी आचमन करने लायक, नहाने लायक और मवेशियों के पीने लायक भी रह जाएगा ? लाखों किसान व गांववासी तो सीधे उजडेंगे ही, इस नदी पर आश्रित करो्डों लोगों की जिंदगी व रोजी-रोटी भी क्या बर्बाद नहीं हो जाएगी ? यह कैसा विकास है ?

इस क्षेत्र में सक्रिय समाजवादी जनपरिषद से जुडे गोपाल राठी व श्रीगोपाल गांगूडा ने कहा कि है कि इससे नर्मदा बहुत ही पवित्र नदी है। इससे लोगों की भावनाएं जुडी हुई हैं, इसे प्रदूषित होने से बचाया जाना जरूरी हैं।

पर्यावरणीय मुद्‌दों पर सतत लेखन करने वाले पत्रकार भारत डोगरा का कहना है कि यह ग्लोबल वार्मिग के संदर्भ में भी देखना चाहिए। थर्मल पावर से जो जिन कार्बन गैसों का उत्सर्जन होगा, उसका असर तापमान पर भी पडेगा। यह दुनिया का सबसे चिंता का विषय है। इसलिए हमें ऊर्जा के दूसरे विकल्पों पर विचार करना चाहिए।

(लेखक विकास संबंधी मुद्‌दों पर लिखते हैं)

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