10 से 12 मार्च तक उज्जैन में लेखन कार्यशाला हुई। इस कार्यशाला में यह सवाल एक कैथोलिक सिस्टर ने किया। मैंने पूछा आखिर लेखन शुरू करने में क्या दिक्कत आती है? जवाब आया- अच्छे शब्द नहीं मिलते। अगर अच्छे शब्द से उनका मतलब उत्कृष्ट और मानक हिन्दी के शब्दों से है तो माफ कीजिए इससे बचना जरूरी है। लिखने के लिए जरूरी है जैसा हम सोचते हैं, वैसा लिखें, शब्दजाल में न फंसे।
लेखन करने से पहले जानकारी चाहिए। जैसे रोटी बनाने के लिए आटा चाहिए। या किसी चिड़िया को घोंसला बनाने के लिए घास के छोटे-छोटे तिनके चाहिए। इसी प्रकार हमें पाठक की जिज्ञासाओं को ध्यान में रखकर जानकारी जुटाना चाहिए। क्या,कब, कहां, कौन, क्यों और कैसे जैसे सवालों के जवाब चाहिए। जिसे पत्रकारिता की भाशा में 5 डब्ल्यू और एक एच कहा जाता है। इसके लिए हमेशा कापी-पेन साथ में हो और कोई नई जानकारी मिले तो तत्काल नोट करना चाहिए।
कई बार हम लिखने के लिए बैठते हैं और एक लाइन लिखते हैं। फिर उसे काटते हैं। यह अभ्यास चलता रहता है। थक-हार कर हम एक तरफ कलम-कागज समेटकर रख देते हैं। सोचते हैं कि यह हमारे वश का काम नहीं। है। अगर जानकारी हो तो सरल शब्दों में अपनी बात लिखें तो शायद यह दिक्कत नहीं आएगी। मैंने ऐसे कई प्रतिभागियों को देखा है कि अगर उन्हें सिरा पकड़ में आ जाए तो वे एक बार शुरू होते हैं तो लिखते ही जाते हैं। जैसे कोई महिला सब्जी काटने बैठती है तो फिर काटती ही जाती है। फिर रूकती नहीं। लेखन भी मु्श्किल नहीं। बशर्ते उनके पास कहने को कुछ हो। अनुभव या जानकारी हो।

इस कार्यशाला में 20 प्रतिभागी थे जिसमें अधिकांश गैर सरकारी संस्था कृपा वेलफेयर सोसायटी के कार्यक्रम संयोजक व ग्रामीण कार्यकर्ता थे। हमने इन दिनों में संपादक के नाम पत्र, खबरें बनाना, केस स्टडी, समूह चर्चा के आधार पर रिपोर्ट बनाने का अभ्यास किया। इसके साथ ही फील्ड विजिट भी की।
उज्जैन के पास कोल्हूखेड़ी गांव गए, जो जहां सपेरा समुदाय के लोग रहते हैं। घुमतू समुदाय के लोग पहले इधर-उधर जा-जाकर अपना पेट पालते थे। लेकिन अब कोल्हूखेड़ी में स्थाई बस गए हैं। हालांकि अब इनका परंपरागत काम यानी सांप पकड़ना और उसे लेकर भीख मांगना बहुत कम हो गया है। ये अब मजदूरी का काम भी करते हैं।
तीन समूहों में विभक्त हमारे प्रतिभागियों ने यहां बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों से साक्षात्कार लिए। और इसके आधार पर वापस कक्षा में आकर दीवार अखबार तैयार किए। जिसका हर समूह ने प्रस्तुतिकरण किया। इस अवसर पर संस्था के संचालक फादर सुनील उज्जाई ने दीवार अखबार पर टिप्पणी की और सबका आभार माना।
BaBa workshop koi bhi ho,urjawan hoti hai.Khastor per Lekhan jaise creative kam me to alag hi urja milti hai.es blog ke sath jharokha ke chitra alag hi shama bandhte hain.
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