Saturday, November 3, 2012

नीली झील और भारत भवन की सैर

जनगढ़ सिंह श्याम का चित्र
आज भोपाल में बड़ी झील के किनारे सिथत भारत भवन जाना हुआ और वहां चित्रों की प्रदर्शनी देखी तो देखता ही रह गया। कैनवास पर रंगों की अनोखी मनमोहक छटा। यहां एक तरफ प्रसिद्ध चित्रकार जे. स्वामीनाथन व रजा साहब की पेटिंग्स थी थ दूसरी तरफ मंडला के आदिवासी युवक जनगढ़ सिंह श्याम और उनकी पत्नी ननकुसिया का रचना संसार सजीव हो रहा था।

भारत भवन के खुलने में थोड़ी देर थी। मैं पास ही बड़ी झील के किनारे पत्थरों पर बैठ गया। दूर-दूर तक नीला पानी। नजरें जहां तक जातीं पानी ही पानी। दूर सफेद बगुलों की टोलियां बैठी हुर्इ। बहुत ही खूबसूरत नजारा।
भारत भवन में दोपहर 1 बजे गए और 3 बजे तक रहे। इस दौरान वहां के कुछ कलाकारों, कर्मचारियों व चित्रकला के विधार्थियों से मुलाकात की। पेंटिंग्स व मूर्तिकला तो देखी ही। मुकितबोध, नागार्जुन, त्रिलोचन व अज्ञेय के कविता पोस्टर भी पढ़े। मुकितबोध के हस्तलिखित पत्र व कविताएं पढ़कर बहुत अच्छा लगा।

जनगढ़ सिंह श्याम का चित्र
मूर्तिकला के स्टूडियो में तीन चार युवा मिटटी से आकृति उकेर रहे थे। एक उभरती मूर्तिकार जिसने हाल ही बड़ोदरा से फाइन आर्ट की स्नातक डिग्री हासिल की है, यहां रोज मूर्ति बनाने का अभ्यास कर रही थीं। मिटटी को ठोंकना-पीटना, चाक पर चढ़ाकर घुमाना, फिर उसे मनचाहा आकार देना, इसमें वह व्यस्त थी। उसे ऐसा करते देखते ही रहे।

जे जे स्कूल बाम्बे से निकले तुषार मूर्ति बनाने के लिए मिटटी को तैयार कर रहे थे। वह कुछ समय के लिए इस स्टूडियो में मूर्तिकला सीख रहे हैं। इसी प्रकार एक युवती जिसने एक महिला की मूर्ति की बनार्इ थी, उसकी मुंदी आंखें को खोल रही थी और कानों को आकार दे रही थी।

यहां लोहे, पीतल, मिटटी व अन्य धातुओं से बनी मूर्तियों की प्रदर्शनी लगी हुर्इ है, जो यहां एक नए वातावरण का निर्माण करती हैं। ऐसा लगता है, झील से जो हवा इनसे टकराती है, जिससे एक नर्इ ध्वनि निकलती है, वह सुरीली व मोहक है।

रूपंकर में चित्रों की प्रदर्शनी लगी थी जिसमें जनगढ़सिंह श्याम, जो मंडला के आदिवासी कलाकार थे और भारत भवन से जुड़े हुए थे, के चित्र भी थे। जनगढ़ की स्मृति इसलिए भी आत्मीय है क्योंकि उन्होंने मेरी कहानी के लिए चित्र बनाए थे। यह कहानी वर्ष 1984 में एक पत्रिका में छपी थी।

आज उनके चित्र देखकर उनकी याद ताजा हो गर्इ, जो सुखद है। जनगढ़ के चित्र आदिवासी संस्कृति के प्रतीक हैं। उसकी पत्नी के चित्र भी देखे। मैंने छत्तीसगढ़ में आदिवासी चित्रकारों के जंगली जानवर, मढर्इ मेले, नृत्य, शिकार, पक्षियों के बहुत सुंदर चित्र देखे हैं, जो मेरे स्मृतियों में बसे हुए हैं।

 जे. स्वामीनाथन की चिडि़या और पहाड़ तो देखे ही रजा की विराट बिन्दु से भी साक्षात्कार हुआ। स्वामीनाथन भारत भवन के शुरूआत से जुड़े और उन्होंने उसे एक आकार दिया। सतपुड़ा की पहाडि़यों में जब मैं अपने बेटे के साथ पक्षियों को विचरण करते देखता हूं, स्वामीनाथन की याद यक ब यक आ जाती है। उनकी स्मृति तबसे मेरे मानसपटल पर अंकित है जब वे गैस पीडि़तों के साथ सड़क पर उतर आए थे।

जे. स्वामीनाथन का चित्र
रजा पकी उम्र फ्रांस से वतन लौट आए हैं, और सकि्य हैं। वे इसी मध्यप्रदेश के माटी पुत्र हैं। उनके संस्मरण नरसिंहपुर में जगदीश भार्इ व रमेश तिवारी सुनाते हैं।

आज मुझे कलागुरू विष्णु चिंचालकर की भी याद आ गर्इ, जिन्होंने मुझे देखना सिखाया। एक कलादृषिट दी, जिसे  मैं अपने लेखन के जरिए सामने लाने की कोशिश करता रहा हूं। वे कबाड़ से जुगाड़ से बेहतर कृतियों को सृजित कर देते थे। ऐसा मैंने यहां के कलाकारों को बताया। मुझे आष्चर्य हुआ कि उन्होंने कलागुरू विष्णु चिंचालकर का नाम नहीं सुना था।

दीपावली के बाद लगने वाले मढर्इ मेले, मोरपंख से बनी ढालें, देवताओं के चबूतरा, त्रिशूल, शादी-विवाह के समय लगने वाले खम्भ, घड़े, हाथी और मिटटी के बैलों को प्रदर्शित किया गया है।

 चित्रकला कभी लोकमानस में व्याप्त थी। कुम्हारों की  घड़े व सुराहियों पर अंकित चित्र, भितित चित्र, तुलसी कोट व घर के आले व आलमारियों में चित्रकारी, लकडि़यों के दरवाजों पर नक्काशियां जनसाधारण में आम बात थी। आदिवासियों में यह अब भी शेष है।

जे. स्वामीनाथन का चित्र
मैं लौटते समय में सोच रहा था क्या संस्कृति को बचाने के लिए नुमाइश ही काफी है? या इसे संग्रहालयों से बाहर जनजीवन में इसे स्थापित करने की जरूरत है। अगर ये सब बच्चों को दिखार्इ जाएं और कलाकार भी देखें  तो नर्इ संस्कृति की मुहिम शुरू हो सकती है।

3 comments:

  1. अच्छा आलेख परन्तु इसे थोड़ा और गहराई से लिखो भाई भारत भवन और यहाँ की बाकी गतिविधियाँ प्रकाशन और एक नाटक जगत जो इसे देश में ज्यादा प्रसिद्धि देता है...............बहरहाल बढ़िया है............

    संदीप नाईक.......

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  2. JanGarh Singh ke chitro ki pradarshani hamein bhi dikhane ke liye dhanyawad. Apki tippani ki yeh chitra aadivasi sanskriti ki katha kehte hain, bahut pasand aayi.

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