Tuesday, March 16, 2010

नर्मदा का अनूठा सौंदर्य क्या बच पाएगा?

सुबह का समय है। मैं महेश्वर के नर्मदा तट पर घूम रहा हूं। सूर्योदय हो रहा है। सूरज का गोला धीरे-धीरे ऊपर आ रहा है और नर्मदा में उसकी तेज सुनहरी किरणें चमक रही हैं। घाट पर चहल-पहल है। कल सोमवती अमावस्या है। स्नान करने के लिए गांवों से हर-हर नर्मदे का जयकारा लगाते हुए श्रद्धालु आ रहे हैं जिसमें महिलाएं भी बड़ी संखया में शामिल हैं। मैं यहां एक कार्यशाला के सिलसिले में तीन दिनी प्रवास पर आया हूं।

मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में महेश्वर स्थित है। इसे देवी अहिल्या बाई की नगरी भी कहा जाता है। वे मल्हारराव होल्कर की पुत्रवधू थीं जिन्होंने अपने पति की मृत्युपरांत शासन की बागडोर संभाली। उनका जन्म ३१ अगस्त १७२५ में हुआ और निधन १३ अगस्त १७९५ को। उन्होंने करीब २८ साल द्गाासन किया। मालवा की राजधानी महेश्वर ही हुआ करती थी।

अहिल्या बाई होल्कर ने अपने शासन काल में कई उल्लेखनीय कार्य किए जिसमें से एक है यहां का हेंडलूम उद्योग। महेश्वर की साड़ियां बहुत ही प्रसिद्ध हैं। जब सभी जगह पावरलूम छा गया है उस समय यहां हेंडलूम से काफी लोगों को रोजगार उपलब्ध है। और यहां की साडियों की बाजार में काफी मांग है। जब कभी महिलाओं की योग्यता की बात आती है तब देवी अहिल्या जैसी महिलाओं की याद की जानी चाहिए जिन्होंने अपने कुद्गाल प्रशासन और न्याय से जनता का दिल का जीत लिया। इस कारण उन्हें देवी की उपाधि दी गई।

एक नर्मदा भक्त तंबूरे की तान और खडताल के साथ भजन गा रहा था। कबीर का भजन। कबीर की तरह फक्कड और मस्तमौला उसका अंदाज था। मैं वहंस वहीं बैठ गया। ऐसे भक्त जो निस्वार्थ भाव से नर्मदा की महिमा का बखान करते हैं, उनका समर्पण देखते ही बनता है। नर्मदा मैया तो जीवनदायिनी और सबकी पालनहार है।

नर्मदा में हल्की हवा के साथ लहरें उठती हैं, गिरती हैं। जैसे पानी के अंदर बैठा कोई बच्चा उन्हें हिला-डुला रहा हो। हमारे हृदय में भी इसी तरह सांस ऊपर-नीचे होती है। एक गहरी शान्ति का अनुभव हो रहा है। सोच रहा था कि इस विराट तट पर कितना शांत और आकर्षक लगती है नर्मदा। इसके कई रूप हैं।

पिछले दिनों जब मैं जबलपुर के पास भेड़ाघाट गया था। वहां धुंआधार पर नर्मदा का एक अलग ही छटा है। मैय्या की धार ऊपर से गिर रही थी। और नीचे से फुहारे छूट रहे थे। खाई में पानी नीचे जाकर गेंद की तरह टप्पा खाकर ऊपर आ रहा था। बहुत की मनमोहक है नर्मदा। बरमान की सतधारा में वह सात धाराओं में बंटकर बेहद खूबसूरत लगती है।

यहां तट पर विराट और भव्य किला है जिसकी कारीगरी देखते ही बनती है। हम इसे देखने गए। इसकी दीवारों और मेहराबों में अलग-अलग आकृतियां उकेरी गई हैं। कई सीढियां चढ कर हम देवी अहिल्या के निवास व मंदिर गए। आरती का समय था। आरती में शामिल हो प्रसाद ग्रहण किया। यह सब देखकर राजाओं के पुराने वैभव व शासन की तो याद आती ही है। उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों को भी जानने का मौका मिलता है।

लेकिन अब नर्मदा संकट में है। जगह-जगह इस पर बांध बनाए जा रहे हैं। महेद्गवर में भी बांध बन रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन लंबे अरसे से संघर्षरत है। पर्यावरणविद्‌ व प्रखयात समाज सेविका मेधा पाटकर कहती हैं यह विकास नहीं, विनाश है। ऊर्जा के कई और विकल्प हैं, उन पर विचार करना चाहिए। मैं सोच रहा था क्या भविष्य में सौंदर्य की नदी नर्मदा बच पाएगी? क्या जीवनदायिनी नर्मदा सदानीरा बनी रहेगी ?

महेश्वर की और भी छाया चित्र देखे यहाँ क्लिक करे
(यह लेख 17 मार्च 2010 छत्तीसगढ़ मै प्रकाशित )

7 comments:

  1. दोनों पक्ष हैं इसके.

    चित्र अच्छे लगे.

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  2. achcha lekh .ise hum janadesh.in par lena chahte hain .

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  3. @savita verma आप इसे प्रकाशित कर सकते है. प्रकाशित होने पर लिंक दे.

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  4. सुन्दर लेख.
    अहिल्याबाई ने बनारस में मन्दिर-मस्जिद विवाद का स्थानीय विद्वत परिषद के साथ राय कर हल निकाला तथा मौजूदा मन्दिर जो करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र है , उसे राजा रणजीत सिंह के दिए सोने से बनवाया। उनकी सूज - बूझ से किए गए इस हल के कारण ही इस जमाने में जब सिंघल सरीखे कहते हैं कि मस्जिद की जगह मन्दिर बने तो जनता नहीं सुनती।

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  5. http://janadesh.in/InnerPage.aspx?Story_ID=2070&Title=%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%AC%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9F%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82

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  6. Narmada has rasied several questions regarding development and democracy... it really has challenged the state which to a great extent had failed to deliver the good... but then there are several issues attached to it... both sides of the coin are equally need to be examined.

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  7. the pictures are memesring

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