सुबह का समय है। पिपरिया एकलव्य में दरी पर करीब 40 लड़के-लड़कियां बैठे हैं। वे किसी साहित्यक गोश्ठी या किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए यहां नहीं आए हैं। बल्कि उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ अर्जित किया हैं, उसे साझा करने और नई पीढ़ी को देने के लिए एकत्रित हुए हैं। वे बारी-बारी से अपनी-अपनी बात कह रहे हैं। बातचीत हिन्दी-अंग्रेजी के मिले-जुले संवाद में चल रही है। यह आयोजन था पिपरिया सृजन का, जो पिछले 5 वर्षो से दीवाली मिलन के अवसर पर होता है।
पिपरिया सृजन एक अनौपचारिक समूह है जिसमें मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के एक छोटे कस्बे पिपरिया से निकले युवा हैं, जो या तो अपनी आगे की पढ़ाई कर रहे हैं या फिर कहीं जॉब कर रहे हैं। ये युवा आपस में इंटरनेट के माध्यम से संपर्क में रहते हैं। पिपरिया सृजन का गूगल ग्रुप्स में भी एक एकाउंट है।
पिपरिया सृजन की शुरुआत उन युवाओं से हुई है जो एकलव्य पुस्तकालय के नियमित पाठक रहे हैं। और वे आज देश-विदेश में अध्ययनरत हैं या रोजगार में लगे हैं। पुस्तकालय से उनका लगाव एवं संपर्क लगातार बना हुआ है। पिपरिया सृजन इसी का परिणाम है। एकलव्य पुस्तकालय इस समूह का संपर्क एवं समन्वय केन्द्र है। इसमे शुरुआत से लेकर अब तक प्रमुख भूमिका गोपाल राठी एवं कमलेश भार्गव की रही है जो इसके संस्थापकों में से एक हैं।
सतपुड़ा अंचल का यह कस्बा भोपाल से जबलपुर रेलमार्ग पर स्थित है। पिपरिया से 54 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी है, जो एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। सतपुड़ा की सबसे उंची चोटी धूपगढ़ भी यहीं है। इस इलाके से नर्मदा नदी भी गुजरती है।
पिपरिया सृजन की सोच यह है कि हम अपने कस्बे और इलाके की नयी पीढ़ी की मदद करे। चाहे वह कैरियर गाइडेंस के रूप में हो या उनके समग्र व्यक्तित्व में सहायक जानकारी हो। किसी भी तरह अपने छोटे भाई-बहनों और साथियों की मदद करने की सच है। चूंकि दीवाली पर सब लोग अपने घर और रिश्तेदारों से मिलने आते हैं इसलिए यह बैठक दीवाली के अगले दिन ही होती है।
इस बैठक में मुंबई से प्रेरणा परसाई आई हैं। वहां वह कंपनी में सॉफटवेयर इंजीनियर है। हालांकि उनका जन्म भोपाल में हुआ है लेकिन उनके पिता पिपरिया के हैं। उनके दादाजी पिपरिया में ही रहते हैं। गुजरात से मनीष आए हैं, वे वहां केमिस्ट के पद पर कार्यरत है। हैदराबाद से आदित्य दुबे शामिल हुए, जो पिपरिया सृजन के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। प्रवीण चौकसे भोपाल से पधारे हैं जिनका पिपरिया आना-जाना होता रहता है। इसके अलावा अनिकेत, अमित,चन्द्रप्रकाश और रूबी शुक्ला सक्रिय हैं। डॉ. कल्पना चौधरी, अतुल पटेल, अजय पटेल, अमित शर्मा, प्रशांत मिश्रा, श्रीगोपाल मिश्रा, महेन्द्र साहू, हर्षवर्धन बल्दुआ, शांतनु सोनी, दीपक रजक, श्रवण राय, योगेश चौरसिया, श्याम मालानी, सचिन परसाई आदि युवाओं की सक्रिय पहल रही है।
इन सभी के मन में स्कूली और महाविद्यालयीन छात्रों के लिए कुछ न कुछ करने की तमन्ना है। साथ ही ऐसे छात्रों के लिए भी मदद करने की रूचि है, जो आज हाशिये पर हैं।
आजकल षिक्षा का मकसद पैसा कमाना हो गया है। बच्चे कैरियर के बारे में सोचते हैं लेकिन इस व्यवस्था में कैरियर बनाना मुष्किल है। हमारे युवाओं की सारी ष्षक्ति इसमें ही लग जाती है। कैरियर के चक्कर कांशियस (चेतना) भी खत्म हो जाती है। कैरियर कुछ का बनता है। कई इस दौड़ से बाहर हो जाते हैं।
फिलट्रेट शिक्षा व्यवस्था सबको सब कुछ नहीं दे सकती है। इसमें कुछ का भाग्य चमक सकता है। हमें शिक्षा के सही मायने समझने होंगे। शिक्षा से दिमाग रोशन होता है। एक अच्छा इंसान बनता है। इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। बहरहाल, इन युवाओं की बात सुनकर मेरा दिल उछल रहा था। सोच रहा था। अगर यह कोशिश कामयाब होती है तो बहुत उपयोगी होगी। इस सार्थक प्रयास के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
यह एक बढि़या प्रक्रिया है मेरे ख्याल से हर छोटे कस्बे या गॉंवों में ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए। हम कुछ लोग, जो गांव से दूर रहकर कुछ काम करते हैं साल में एक बार अपने छोटे से गॉंव हिरनखेड़ा में दीपावली पर इकट्ठा होकर ऐसे प्रयास करते हैं।
ReplyDeleteपिपरिया सृजन का यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय है। पिपरिया में कम से कम एकलव्य तो है जहां नौजवान इकट्ठे होकर बात कर सकते हैं। नए जमाने के हमारे बच्चे अपने कस्बे को लेकर क्या सोचते हैं, यह जानने की इच्छा है। अपनी नौजवानी में हम जैसा सोचते थे, उसमें वक्त ने क्या बदलाव किए हैं, यह नौजवान पीढ़ी से बात करके ही पता चलेगा। आप और गोपाल भाई का कस्बे के नौजवानों से सीधा संपर्क है, इसलिए कभी नौजवानों के सपने भी अपने ब्लाग में लाइए। वैसे बाबा, आप अपने ब्लाग में लगातार महत्वपूर्ण मुद्दे उठा रहे हैं। दरअसल यह गांव की रिर्पोटिंग ही है। गांव और उनकी मुसीबतें मीडिया जिनकी लगातार अनदेखी कर रहा है। चाहे स्थानीय नदियों के संकट हों या बुनकरों की पीड़ा या टीबी से बेहाल बीमार, आप सबकी सुध ले रहे हैं, यह बड़ा काम है। आपको बधाई।
ReplyDeleteबाबा यह तो बहुत उम्दा खबर है। इस काम को और व्यापकता के साथ फैलाना चाहिए। पिपरिया सृजन के बारे में पढ़कर भी अच्छा लगा। मेरा सुझाव है कि पिपरिया सृजन के नाम से एक ही एक सामूहिक ब्लाग बनाना चाहिए। यह ब्लाग दूर-दराज बैठकर भी एक- दूसरे से बात करने का एक जरिया बन सकता है। वे युवा जो अब मेट्रो या अन्य शहरों में हैं और वे जो पिपरिया में अभी पढ़ लिख रहे हैं या रह रहे हैं,अपनी बातें,चिंताएं और शंकाएं एक दूसरे से साझा कर सकते हैं।
ReplyDeleteइस खबर ने नई सुबह में एक महक होल दी है। इस तरह के काम हमें काम करने के लिए जिनंदा करते है। हम जिदगी को अपने अपने अंदाज में जिते है। पर यह जिदंगी का अंदाज बदल कर जिने कि राह है। पिपरिया के सभी साथियों को इस आगाज के लिए बधाई इमरान खान
ReplyDeleteइस खबर ने बहुत भावुक कर दिया। गोपाल भाई,आपको और ’एकल्व्य ’ को हार्दिक साधुवाद। सप्रेम,
ReplyDeleteits really nice and great effort. Your blog is one of its kind
ReplyDeletePawan