Thursday, August 18, 2011

भ्रष्टाचार की लड़ाई को वैकल्पिक राजनीति से जोड़ना होगा

भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे के आंदोलन को अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है। सरकार और अन्ना आमने सामने आ गए हैं। उन्हें गिरफतार कर जेल भेज दिया है और उन्होंने जेल में ही अनषन जारी रखा है। इधर देश भर में उनके आंदोलन के समर्थन में रैली, धरना और मोमबत्ती जलाकर समर्थन दिया जा रहा है। सरकार सांसत में है।


जब भी अपने देश में कोई समुदाय या व्यक्ति अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ता है या व्यवस्था पर सवाल उठाता है तो सरकार उसकी बात सुनने के बजाय उसे दबाने की भरसक कोशिष करती है। हाल ही में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बाबा रामदेव ने दिल्ली में अपना आंदोलन शुरू किया था तो पुलिस ने आधी रात को पहुंचकर उन्हें बलपूर्वक वहां से खदेड़ दिया था। समर्थकों पर डंडे बरसाए गए थे। और अब अन्ना के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।

इस सरकार की तरफ से ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें हठधर्मिता और तानाशाही की बू आती है। डंडे का जोर दिखाया जा रहा है। हालांकि जन समर्थन को देखते हुए अब सरकार के रूख में नरमी आई है। जिस तरह से अन्ना को मीडिया का समर्थन मिल रहा है, वह स्वागत योग्य है। लेकिन जमीनी संघर्शों और जल, जंगल और जमीन की लड़ाईयों को उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है।

देश के कई कोनों में इस समय जमीनी स्तर पर कई आंदोलन चल रहे हैं। उनका दमन करने की खबरें आती रहती हैं। उनके कार्यकर्ताओं पर मुकदमे और उन्हें जेल कर दी जाती है। वही रामदेव के साथ हुआ और वैसा ही अन्ना हजारे के साथ करने की तैयारी लग रही है। म्ुाुद्दे से हटकर उसे संसद और सिविल सोसायटी के बीच टकराव की तरह पेश किया जाता है।

अन्ना की मुहिम मौजू हैं, उससे असहमत नहीं हुआ जा सकता। क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जो देश केा खोखला कर रहा है। ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार फैला हुआ है। क्या नेता और क्या अफसर सभी इसमें डूबे हुए हैं। इनका ठेकेदार, कंपनियों पूंजीपतियों, दलालों और माफियाओं के साथ गठजोड़ बन गया है। घोटाले पर घोटाले सामने आ रहे हैं। पहले कुछ लाख या करोड़ के घोटाले होते थे, अब लाख करोड़ तक पहुंच गए हैं।

ताजा मामला 2 जी स्पेक्टम घोटाले का है जिसकी राषि 1.74  लाख करोड़  है। इस मामले में ूर्व मं.त्री ए राजा जेल में हैं। इसी मामले में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी कोनीमोझी भी जेल में हैं। राष्ट्रमंडल घोटाले के आरोप में सुरेश कलमाडी जेल की हवा खा रहे हैं।

जानकारों का मानना है कि इन घपलों-घोटाला का दौर का गहरा संबंध उदारीकरण और वैष्वीकरण की नीतियों से है। वे मानते हैं कि वर्ष 1991 में जब से ये नीतियों देश में लागू हुई हैं। इसमें देशी-विदेशी कंपनियों की बड़ी भूमिका है।

सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार के अलावा बाजार का भी भ्रष्टाचार बढा है। शिक्षा और चिकित्सा में बाजार की बेतहाशा लूट बढ़ी है। जो कानूनी रूप से तो वैध हो सकती हैं लेकिन जनता को लूटा जा रहा है। जैसे स्कूल या डॉक्टरों की अनाप-शनाप शुल्क वसूली। आजकल शिक्षा एक फलता-फूलता व्यापार है, इसमें आम लोगों की गाड़ी कमाई का पैसा लूटा जा रहा है। शायद इसे कानून बनाकर भी रोकना मुश्किल है। जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों को कंपनी और उद्योगों को सौंपा ाज रहा है। इसमें भी काफी भ्रष्टाचार हो रहा है।

अब सवाल यह है कि भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा? इसके सामाजिक और आर्थिक की पड़ताल जरूरी है। छोटे और बड़े भ्रश्टाचार में अंतर करना जरूरी है। एक साधारण व्यक्ति के भ्रश्टाचार और सत्ता में बैठे लोगों के भ्रष्टाचार का अंतर करना जरूरी है। भ्रश्टाचार का एक आयाम उपभोक्तादी संस्कृति भी है, जिस पर सोचना जरूरी है। देश में अलग-अलग चल रहे छोटे-छोटे आंदोलनों को इससे जोड़ना पड़ेगा और सबसे जरूरी है कि इसके लिए जनता को जागरूक होना पड़ेगा।

यह सही है कि कुछ हद तक लोकपाल जैसे कानून से लगाम लगेगी पर पूरी तरह नहीं। धर्म, संस्कृति से अच्छाई का संदेश लोगों को मानव मूल्यों से संचालित करता है। गांधी के विचार हमारा मार्गदर्षन कर सकते हैं। यानी इस मामले में एक व्यापक दृष्टि जरूरी है तभी इस अभूतपूर्व चेतना से एक वैकल्पिक राजनीति बन सकती है, जो देश की जरूरत है।

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