Wednesday, December 30, 2009

बरमान में सतधारा की निराली छटा

भेड़ाघाट से लौटते हुए दूसरे दिन बरमान गए। रात्रि विश्राम नरसिंहपुर में किया। मध्यप्रदेश में करेली- सागर रोड़ पर स्थित है बरमान। यहां से भी नर्मदा होकर गुजरती है। अमरकंटक में विन्ध्यांचल और सतपुड़ा के मिलन बिन्दु से प्रारंभ होकर नर्मदा गुजरात में खम्बात की खाड़ी में मिलती है। इस बीच वह मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों से होकर गुजरती है। यह मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी नदी है।

हम नर्मदा पुल पर उतरे और पैदल तट तक पहुंचे। यहां नर्मदा का तट बहुत ही संकरा है। पुल से ऊपर सतधारा है लेकिन ज्यादातर लोग पुल के नीचे ही स्नान करते हैं, ऊपर तक नहीं जाते। यहां विशालकाय चट्टानें हैं, उनके बीच से नर्मदा अपने ही निराले अंदाज में वेग से बह रही है। उफनती हुई स्वच्छ निर्मल धारा को देखते आंखें नहीं थकतीं। दिन भर बैठे देखते रहो। नयनाभिराम दृश्य। बहुत ही मनमोहक।

नरसिंहपुर से बहन भी साथ आई है। वह साथ में बाटी-भर्ता बनाने की सामग्री भी लाई है। आटा, बैंगन, लहसुन, टमाटर आदि। घुटनों तक पानी में डुबकी लगाकर हम तट पर पहुंच गए। इधर बहन ने गोबर के उपलों की अंगीठी सुलगा दी थी। वह आटा गूंथ रही थी। बेटा और पत्नी आलू और बैगन भून रहे थे। कुछ ही देर में बाटी और भर्ता तैयार। हमने भरपेट भोजन किया। नर्मदा तट पर पानी पिया। बहुत मीठा और साफ व स्वच्छ। आत्मा तृप्त हो गई।

नर्मदा न केवल उसके किनारे रहने वाले लोगों को बल्कि पशु-पक्षियों, वन्य प्राणियों, पेड़-पौधों और जंगलों को भी पालती-पोसती रही है। वह जीवनदायिनी है। नर्मदा जल की बात ही निराली है। यह जल सबको तारने और सबके दुखों को हरने वाला है। इसे लोग अपने घरों में बरसों सहेजकर रखते हैं। बहन ने भी यह जल बोतल में भरा और नर्मदा को नमन किया।


बरमान में मकर संक्राति पर बड़ा मेला लगता है जिसकी तैयारी रेतघाट में शुरू हो चुकी हैं। इस मेले में दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। गांव से बैलगाड़ियों में भर कर लोग आते हैं। वे अपने बैलों को नहला-धुलाकर व सजा-धजा कर लाते हैं। और नर्मदा तट पर बाटी-भर्ता बनाकर खाते हैं।मेले में सर्कस भी आता है। ऐसे मेले ग्राम्य जीवन में उमंग व उत्साह का संचार कर देते हैं। इनका खासतौर से बच्चों और महिलाओं को बेसब्री से इंतजार रहता है, जिन्हें बाहर निकलने का मौका कम मिलता है।

नर्मदा में चल रही छोटी नाव हमारा ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच रही थी। हालांकि मछुआरा समुदाय की हालत बहुत अच्छी नहीं मानी जा सकती। जबलपुर के पास नर्मदा पर बरगी बांध देश के बड़े बांधों में एक था। यह वर्ष 1990 के आसपास पूरा हुआ। मुझे पिछले वर्ष मछुआरा समुदाय जो केंवट, बरौआ, कहार में विभक्त है, के साथ बातचीत करने का मौका मिला।

उनके अनुसार जबसे यह बांध बना है तबसे उनकी रोजी-रोटी छिन गई। नर्मदा के किनारे पर उनकी बड़ी आबादी है। जबलपुर से लेकर गुजरात तक ये नर्मदा नदी में मछली पकड़ने का काम करते थे और उसके तटों पर फैली रेत पर डंगरवारी (तरबूज-खरबूज की खेती) करते थे। बरगी बांध बनने से उनके दोनों धंधे प्रभावित हुए। बरगी बांध से समय-बेसमय पानी छोड़े जाने के कारण वे आज न तो डंगरवारी कर पा रहे हैं और न ही अब नर्मदा में मछली ही बची है।

नर्मदा में लोग श्रद्धा से पैसे भी चढ़ाते हैं जिन्हें इसी मछुआरे समुदाय के बच्चे पानी में तैर कर पैसे उठा लेते हैं। इन बच्चों की पानी में गोता लगाने की गजब की क्षमता है। वे पानी के अंदर 5-10 मिनट तक सांस रोके रख सकते हैं। यह भी एक योग व प्राणायाम की तरह है, जिसे बिना अभ्यास के बड़े भी नहीं कर सकते। वर्श के अंत में और नए साल की शुरूआत में नर्मदा के साथ हमारा यह साक्षात्कार यादगार व मजेदार रहा। घर लौटते समय सोच रहा था कि युगों से प्रवाहमान नर्मदा जैसी नदियों को हम क्या बचा पाएंगे? नर्मदा की कई सहायक नदियां या तो सूख चुकी है या फिर बरसाती नाला बनकर रह गई है।

2 comments:

  1. बड़ी बड़ी यादें दिला रहे हैं आप!!


    मुझसे किसी ने पूछा
    तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
    तुम्हें क्या मिलता है..
    मैंने हंस कर कहा:
    देना लेना तो व्यापार है..
    जो देकर कुछ न मांगे
    वो ही तो प्यार हैं.


    नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  2. प्रिय मायाराम,
    तुम्हारा हर पोस्ट दिल को छू लेता है।
    ऐसे ही लिखते रहो;तुम्हारी आँखों से हम जैसे प्रवासी मध्य प्रदेशी देखते व मह्सूस करते रहेंगे !
    स्वाति

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