अशोक जी, यानी अशोक सेकसरिया, लेकिन हम सब उन्हें अशोक जी कहते थे. उनकी बहुत सी यादें हैं, मेरे मानस पटल पर.
फोन पर लगातार बातें तो होती रहती थी,मिला भी तीन-चार बार. लेकिन जब भी मिला बहुत स्नेह मिला.
फोन पर लगातार बातें तो होती रहती थी,मिला भी तीन-चार बार. लेकिन जब भी मिला बहुत स्नेह मिला.
जब सामयिक वार्ता, दिल्ली से इटारसी आ गई, लगातार उनसे फोन पर
चर्चा होती रही.यह सिलसिला आखिर तक बना रहा.
आखिरी मुलाकात उनके घर कोलकाता में 26 जून 2014 को हुई,जब मैं अपने बेटे विकल्प के साथ मिलने गया था. दोपहर के दो बजे होंगे. वे अपने कमरे में बिस्तर पर बैठे कुछ पढ़ रहे थे.बिस्तर पर और उसके आसपास किताबें फैली हुई थी. वे कहने लगे- मेरे एक मित्र मिलने आने वाले हैं- बाबा मायाराम. मैंने कहा- मैं ही हूं बाबा. वे बोले- अरे, देखिए, मायाराम मेरी याददाश्त कुछ कमजोर हो गई है। लेकिन मैं उनके घर 6 घंटे रहा, उनकी याददाश्त बहुत अच्छी थी, उन्हें सब कुछ याद था.
आखिरी मुलाकात उनके घर कोलकाता में 26 जून 2014 को हुई,जब मैं अपने बेटे विकल्प के साथ मिलने गया था. दोपहर के दो बजे होंगे. वे अपने कमरे में बिस्तर पर बैठे कुछ पढ़ रहे थे.बिस्तर पर और उसके आसपास किताबें फैली हुई थी. वे कहने लगे- मेरे एक मित्र मिलने आने वाले हैं- बाबा मायाराम. मैंने कहा- मैं ही हूं बाबा. वे बोले- अरे, देखिए, मायाराम मेरी याददाश्त कुछ कमजोर हो गई है। लेकिन मैं उनके घर 6 घंटे रहा, उनकी याददाश्त बहुत अच्छी थी, उन्हें सब कुछ याद था.
उन्होंने बताया कि वे दो बार केसला गए हैं. एक बार 1982 में और दूसरी
बार किशन जी ( किशन पटनायक) की किताबों का संपादन करने। पहली बार जब गए थे तब
सुनील भाई बांसलाखेड़ा में रहते थे. वहां पहुंचने के लिए नदी
पड़ती थी.
उसमें बहुत पानी था और हमें उसे पार करने में भींगना पड़ा था.
शायद बरसात
के दिन थे. यह जंगल के बीच में बहुत ही रमणीक जगह थी.
मैंने उन्हें शांति निकेतन के बारे में बताया. वहां मैे फाइन
आर्ट में
अपने बेटे के एडमिशन के लिए गया था. एक घटना सुनाई. मैंने
उन्हें बताया
कि एक महिला बस में चढ़ी, मैं भी उसी बस में था. महिला ने कंडक्टर को
बस
में चढ़ते ही बता दिया- मेरे पास पैसे नहीं हैं. कंडक्टर ने
कहा- कोई बात
नहीं। उन्होंने ध्यान से सुना और मुझे बताया- उनके एक परिचित भी
गरीब
हैं, जो कुछ दूर पैदल चलते है, फिर बस पकड़ते हैं. जिससे थोड़े पैसे बच
जाते हैं. मैंने कहा- अशोक जी मध्यप्रदेश में बिना पैसे टिकट चलना
मुश्किल है. कंडक्टर पीट कर भगा देगा.
अशोक जी सामयिक वार्ता की शुरूआत से जुड़े थे. लेकिन मेरा ज्यादा संपर्क
हाल ही में तब हुआ जब सामयिक वार्ता इटारसी आ गई. सुनील भाई
उनसे लगातार
संपर्क रखते थे. जब हम वार्ता के नये अंक बारे में सोचते थे, अशोक जी की
राय लेते थे. कभी किसी विषय पर अनिर्णय की स्थिति में होते थे, उनकी राय
लेते थे. किसी शब्द के अर्थ पर अटकते थे, उनसे पूछते थे.
जितना सरल
हिन्दी में लिखते थे, उसकी कोई सानी नहीं है. सहज और सटीक.
वे शब्दों के अर्थ ढूढ़ने उस समय तक जुटे रहते थे, जब तक संतुष्ट न हो
जाते. उस दिन भी अलका सरावगी ने उन्हें फोन कर बताया था कि उनके
घर में
कोई बीमार है. बीमारी का नाम भी बताया था, वे लगातार शब्दकोश में
उस
बीमारी के बारे में तलाश करते रहे. साथ में हमसे बात करते
रहे.मेरे बेटे
ने उनका स्कैच बनाया. वे मुस्कराए और कहा लगातार स्कैच बनाते
रहो. मेरे
कमरे का भी बनाओ. किताबों को दिखाते हुए कहा.
जब मैंने उन्हें बताया मैं इंदौर में पढ़ा हूं, वे पूछने लगे होमी दाजी
के बारे में. होमी दाजी, मशहूर मजदूर नेता होने के साथ लोकसभा सदस्य
रह
चुके हैं. उन्होंने कला गुरू विष्णु चिंचालकर को भी याद किया.
उन्होंने कहा कि गुरूजी के दोस्तों को भी याद किया जिसमें कुमार
गंधर्व भी थे.
अशोक जी, हमेशा अपने आपको पीछे रखते थे. अपने नाम से नहीं लिखते थे. उनकी
कहानियों की किताब भी उनके मित्रों ने प्रकाशित करवाई, बिना उनकी जानकारी
के. वे सामयिक वार्ता में भी रामफजल ने नाम से लिखते थे.
उन्होंने कई लोगों को तराशा बनाया.कईयों को लेखक बनाया. ऐसे
लोगों को भी
जिनका लिखने- पढ़ने की दुनिया से वास्ता नहीं था. बेबी हालदार
इसका अच्छा
उदाहरण है, जो एक कामवाली महिला थी, जिसे प्रोत्साहित कर अशोक जी ने ही
एक विख्यात लेखक बना दिया. आज उसकी किताब- आलो आंधारि बेस्टसेलर
है.
छुपकर सृजन करना अशोक जी के ही बस का था, वे बिरले इंसान थे, हमारे बीच
जब हर आदमी प्रचार का आजन्म भूखा है.
उनकी सहजता और सरलता अपना बना लेती थी. उनकी जैसी सादगी और
सिद्धांतनिष्ठा की आज बहुत जरूरत है. वे एक उम्मीद थे,इसलिए हमेशा ऐसे
लोगों से घिरे रहते थे जो कुछ करना चाहते हैं. कुछ नया सोचते
हैं, जो कुछ
सीखना चाहते हैं. हमें अब बात करते उनसे 5-6 घंटे हो गए थे. इस
बीच हमने
तीन चार चाय पी. वे दरवाजे तक छोड़ने आए- फिर बात होगी- मायाराम। सुनील
भाई के बाद अशोक जी का जाना, मेरे लिए बहुत बड़ा सदमा है.
संजय भारती के घर आज अशोक जी को याद किया जा रहा है. कल अलका सरावगी ने
भी बताया था. हम हमेशा उनको याद करते रहेंगे और उनकी राह पर
चलते रहेंगे.
उनको शत्- शत् प्रणाम!