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इस वर्ष खाली रह गया तालाब, यह शीर्षक था एक दीवार अखबार का, जो सतपुड़ा पर्वतीय क्षेत्र के एक छोटे से गांव के स्कूली बच्चों ने तैयार किया था। रंग-बिरंगी स्याही से हस्तलिखित अखबारों को जब मैंने देखा तो देखता ही रह गया। हरे-भरे खेत, जंगल, मोर, शेर, नदी, नहर और तालाब के सुंदर चित्रों ने मन मोह लिया। यह दीवार अखबार बच्चों ने तीन दिनी कार्यशाला के बाद बनाए थे।...





दिव्या, जानकी, दीक्षा, मनीषा,रामकुमार, गोविंद आदि स्कूली बच्चे हाथ में पेन-कापीलिए साक्षात्कार ले रहे थे। डापका गांव के पूर्व सरपंच लक्ष्मण प्रसाद मेहरा और कोरकू  रानी रेवाबाई अपने ही गांव के बच्चों को नई भूमिका में देखकर भाव विह्वल हो गईं। बच्चे सवाल पर सवाल किए जा रहे थे और गांव के लोग उन्हें सुखद आश्चर्य से देख रहे थे। यहां चाहे घरों में काम करती महिलाएं ...
हों या खेत जाने वाले किसान,  दूकान पर बैठे दुकानदार हों या स्कूल के शिक्षक सबसे बच्चों ने सबके साक्षात्कार लिए।  अलग-अलग टोलियों में विभक्त बच्चे पेशेवर पत्रकारों की तरह चर्चा कर रहे थे।